इक पुराना हादसा फिर याद मुझको आ गया
इक पुराना हादसा फिर याद मुझको आ गया इक तसव्वर आज फिर दिल को मेरे तड़पा गया ये तबस्सुम का तसल्सुल जो मेरे लब पर खिला मेरे इस अंदाज़ से फिर दर्द धोखा खा गया सादगी का ये सिला पाया दिल-ए-मजरूह ने बारहा खाया है धोखा , बारहा लूटा गया आज गुज़रा सा इधर से याद का इक क़ाफ़िला वो ग़ुबार उट्ठा कि दिल पर गर्द बन कर छा गया साज़िशें ये थीं मुक़द्दर की कि कश्ती का मेरी रुख़ अभी साहिल की जानिब था कि तूफ़ाँ आ गया भूल जाने के सिवा अब तो कोई चारा नहीं तेरे हर अंदाज़ से ऐ दोस्त जी उकता गया हम उसे जाते हुए देखा किए , और उसने भी फिर पलट कर भी न देखा अबके वो ऐसा गया ये भी इक “ मुमताज़ ” उसका दिलनशीं अंदाज़ है आज फिर ख़्वाबों में मीठी याद बन कर आ गया तसव्वर – कल्पना , तबस्सुम का तसल्सुल – लगातार मुसकराना , मजरूह – घायल , बारहा – बार बार , जानिब – तरफ़ , चारा – इलाज , दिलनशीं – दिल में समाने वाला