बन गए हैं आज तो तर्याक़ वो मेरे लिये
बन
गए हैं आज तो तर्याक़ वो मेरे लिये
मैं
ने सारी ज़िन्दगी जो ज़हर के साग़र पिये
उसकी
हर इक बात में थी इक सवालों की लड़ी
इक
मोअम्मा बन गया था आज वो मेरे लिये
हमने
सौ सौ बार की कोशिश, मगर सब रायगाँ
दिल
रफ़ू हो ही न पाया, हम ने सौ टुकड़े सिये
जाने
किस सूरत से टूटेगा फ़ुसून-ए-आरज़ू
हुस्न
की सौ सूरतें हैं, इश्क़ के सौ ज़ाविये
कौन
जाने कितने पेच-ओ-ख़म हैं राह-ए-इश्क़ में
कौन
सा है मोड़ आगे राह में, अब देखिये
वो
भी था फ़ैयाज़, बाँटे उसने भी जी भर के ग़म
हम
भी दामन भर के लाए ज़ख़्म जो उसने दिये
ले
रही है फिर से सुब्ह-ए-आरज़ू अंगड़ाइयाँ
ज़िन्दगी
की सिम्त के सारे दरीचे खोलिये
रोज़
मैं मरती रही, मर मर के फिर जीती रही
कितने
ही “मुमताज़” मेरे इम्तेहाँ उसने लिये
तर्याक़
–
ज़हर मारने की दवा, साग़र – पियाले, मोअम्मा – पहेली, रायगाँ – बेकार, किस सूरत – किस तरह, फ़ुसून-ए-आरज़ू – इच्छाओं का जादू, ज़ाविये – पहलू, पेच-ओ-ख़म – मोड़ और घुमाव, फ़ैयाज़ – बड़े
दिल वाला, सिम्त – तरफ़, दरीचे – खिड़कियाँ
Comments
Post a Comment