दिल में फिर हलचल हुई, वो इक निशाँ फिर जाग उठा

दिल में फिर हलचल हुई, वो इक निशाँ फिर जाग उठा
इक इरादा, इक तसव्वर नागहाँ फिर जाग उठा

फिर से इक सुबह-ए-तमन्ना दिल में जाग उठ्ठी है आज
जो बसा था दिल में वो शहर-ए-बुताँ फिर जाग उठा

मस्लेहत की कश्तियाँ हैं दूर साहिल से अभी
आरज़ूओं का वो बहर-ए-बेकराँ फिर जाग उठा

किसने रौशन की है दिल पर ये निगाह-ए-इल्तेफ़ात
ये ज़मीं रौशन हुई, लो आस्माँ फिर जाग उठा

ले रही हैं फिर से बेकल ख़्वाहिशें अंगड़ाइयाँ
फिर सफ़र जारी हुआ है, कारवाँ फिर जाग उठा

जल चुका था जो गुलिस्ताँ, फिर से वो गुलज़ार है
खिल उठे फिर गुल चमन में बाग़बाँ फिर जाग उठा

लगता है फिर आज कोई हादसा क़िस्मत में है
झूम उठी मुमताज़ ख़्वाहिश, वो गुमाँ फिर जाग उठा 


तसव्वर कल्पना, नागहाँ अचानक, शहर-ए-बुताँ सुंदर लोगों का शहर, मस्लेहत समझौता, बहर-ए-बेकराँ अथाह सागर, इल्तेफ़ात मेहरबानी, गुमाँ ग़लतफ़हमी

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते