जुनूँ में मार के ठोकर जलाल-ओ-हश्मत पर

जुनूँ में मार के ठोकर जलाल-ओ-हश्मत पर
निकल तो आए हैं इस अजनबी मुसाफ़त पर

किसे ख़बर थी कि तू भी नज़र बचा लेगा
यक़ीन हम को बहुत था तेरी मोहब्बत पर

अना भी ऐसी कि ठोकर पे है जहाँ सारा
ग़ुरूर हम को बहुत है इस अपनी आदत पर

ज़रा सा झुक के ज़माने को जीत लें लेकिन
तरस भी आता नहीं हमको अपनी हालत पर

निकल भी जाए तमन्ना, झुके न सर भी कहीं
ये सारी बात फ़क़त मुनहसिर है हिम्मत पर

जो चाह लें तो फ़लक तक भी हम पहुँच जाएँ
निसार होती है क़िस्मत हमारी अज़्मत पर

झुका है सर तो फ़क़त तेरे आस्ताने पर
है नाज़ हम को तो मुमताज़ इस इबादत पर  


जलाल-ओ-हश्मत महानता और शान-ओ-शौकत, मुसाफ़त सफ़र, फ़क़त सिर्फ़, मुनहसिर based, अज़्मत महानता, आस्ताने पर चौखट पर 

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते