फ़ैसला लो, सुना दिया मैं ने
फ़ैसला लो , सुना दिया मैं ने नक़्श दिल से मिटा दिया मैं ने तुम को दरकार इक खिलौना था शीशा-ए-दिल थमा दिया मैं ने अपने हाथों की सब लकीरों को रफ़्ता रफ़्ता मिटा दिया मैं ने अपने पैकर से रंग चुन चुन कर सारा गुलशन सजा दिया मैं ने ज़िन्दगी , इतनी मेहरबाँ क्यूँ है तेरा हरजाना क्या दिया मैं ने वक़्त की नज़्र हो गईं यादें एक ख़त था , जला दिया मैं ने देखा “ मुमताज़ ” मैं ने मिट कर भी और फिर सब भुला दिया मैं ने नक़्श – निशान , रफ़्ता रफ़्ता – धीरे धीरे , पैकर – जिस्म , नज़्र – हवाले