अँधेरों को शुआएँ नूर की पहनाई जाती हैं

अँधेरों को शुआएँ नूर की पहनाई जाती हैं
अजब अंदाज़ से सब उलझनें सुलझाई जाती हैं

मचलना, रूठना, नाराज़ हो जाना, सज़ा देना
मेरे महबूब में क्या क्या अदाएँ पाई जाती हैं

कभी ख़ंजर, कभी नश्तर, कभी अबरू की जुम्बिश से
ग़रज़ किस किस तरह हम पर बलाएँ ढाई जाती हैं

न जाने उज़्र किस किस तरह से फ़रमाए जाते हैं
कहानी कैसी कैसी देखिये बतलाई जाती हैं

कभी मेहर-ओ-मोहब्बत से कभी नामेहरबाँ हो कर
हर इक सूरत हमारी हसरतें उकसाई जाती हैं

नज़र धुंधली हुई जाती है क्यूँ दिल पाश होता है
मुक़द्दर के उफ़क़ पर क्यूँ घटाएँ छाई जाती हैं

कभी रंगीन जल्वों से, कभी मुमताज़ ख़्वाबों से
तमन्नाएँ हर इक अंदाज़ से बहलाई जाती हैं


शुआएँ किरणें, नूर उजाला, अबरू भौंह, जुम्बिश हिलना, उज़्र बहाना, पाश टुकड़ा, उफ़क़ क्षितिज, मुमताज़ अनोखा 

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