तुझ से मिलना, तुझ को पाना दिल के लिए आज़ार हुआ
तुझ
से मिलना, तुझ को पाना दिल के लिए आज़ार हुआ
आईने
से आँख मिलाना मेरे लिए दुश्वार हुआ
दिल
की बात समझ जाते हैं मेरा चेहरा देख के लोग
गोया
दिल के हर जज़्बे का ये चेहरा अख़बार हुआ
ये
दिल और निगाहें दोनों दुश्मन हैं इक दूजे के
दिल
ने बात छुपानी चाहिए, आँखों से इक़रार हुआ
मेरे
साक़ी की आँखों की एक शरारत, लाख सवाल
मय
बरसाई आँखों ने और रुसवा हर मयख़्वार हुआ
लम्हा
लम्हा सदियाँ गुज़रीं, सदियों सदियों इक आलम
तेरे
हिज्र का इक इक लम्हा कितना कमरफ़्तार हुआ
तेरे
दिल से मेरे दिल तक एक चराग़ाँ राह बनी
राह
के बीचों बीच में लेकिन इक लम्हा दीवार हुआ
यादों
की पुरवाई चली तो रूह के दर्द उभर आए
दिल
के छाले जब जब फूटे सारा तन बीमार हुआ
कहीं
शहर यादों के आए, मुस्तक़बिल के दश्त कहीं
हर
लहज़ा, हर क़दम सफ़र से दिल मेरा बेज़ार हुआ
चेहरे
पे सौ चेहरे लगाए घुटते रहे और हँसते रहे
अब
किस को बतलाएँ हम ये हम पे सितम सौ बार हुआ
कुछ
तो हमें “मुमताज़” थी आदत तनहाई में जीने की
कुछ
था करम अहबाब का जो दिल दुनिया से बेज़ार हुआ
मुस्तक़बिल
–
भविष्य, अहबाब – प्यारे लोग
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