देख के हम को कतरा जाना दुनिया का दस्तूर हुआ - एक बहुत पुरानी ग़ज़ल
देख के हम को कतरा जाना दुनिया का दस्तूर हुआ हम ना जिसे गिनती में लाए वो भी अब मग़रूर हुआ हम ने तो महफ़ूज़ बहुत रक्खा था अना के शीशे को आईना नाज़ुक था ज़रा सी ठेस लगी और चूर हुआ दस्त दराज़ी सब के आगे थी हमको मंज़ूर कहाँ हम कितने लाचार हुए ये दिल कितना मजबूर हुआ इस जंगल की वुसअत में हम चलते चलते हार गए राह कुशादा है अब भी सारा तन थक कर चूर हुआ किस ने इस वीराने में ये दीप जला कर छोड़ा था तेज़ हवा से लड़ता कब तक आख़िर वो बेनूर हुआ यूँ तो बहुत सी चोटें खाईं सारा तन ही ज़ख़्मी था ज़ख़्म वो जो “ मुमताज़ ” था दिल पर वो तो अब नासूर हुआ