मैं कि शायर हूँ, है अंदाज़ निराला मेरा
बिखरा
करता है हर इक दिल में उजाला मेरा
मैं
कि शायर हूँ, है अंदाज़ निराला मेरा
राह
कोई न मिली उसको मेरी जानिब की
कितना
मजबूर हुआ चाहने वाला मेरा
दर्द
अब हद से सिवा होने लगा है दिल में
अब
तो रह रह के तपक जाता है छाला मेरा
बेनियाज़ी
पे असर कोई तो होगा उसकी
अर्श
को जा के हिला आया है नाला मेरा
रूह
प्यासी है, जिगर ज़ख़्मी है, दिल बोसीदा
अक्स
क़िस्मत ने भी क्या ख़ूब है ढाला मेरा
ऐसी
नाख़्वांदा इबारत थी, पढ़ा कुछ न गया
जब
नजूमी ने कभी फ़ाल निकाला मेरा
नज़्र
क्या क्या ना किए रंज-ओ-ग़म-ओ-महरूमी
उस
ने “मुमताज़” कहा कोई ना टाला मेरा
जानिब
–
तरफ़, तपक – टीस, बेनियाज़ी
– बेपरवाई (अल्लाह की एक ख़ासियत), अर्श
– सातवाँ आसमान, बोसीदा – टूटने फूटने के क़रीब, नाख़्वांदा – अपठनीय, नजूमी – ज्योतिषी, फ़ाल – भविष्यफल, नज़्र – तोहफ़ा
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