ये आलम बेहिसी का, ये दिल-ए-हस्सास के छाले
ये आलम बेहिसी का , ये दिल-ए-हस्सास के छाले तमन्ना की ये महरूमी हमें पागल न कर डाले अभी तो ज़ख़्म देखे हैं बदन के , और ये आलम है अभी देखे कहाँ तुम ने हमारी रूह के छाले ये उलझी उलझी हर साअत , ये टूटा फूटा हर लम्हा तमन्ना देखिये अब ज़िन्दगी को किस तरह ढाले करेगा तो वही आख़िर जो इसने सोच रक्खा है सुनेगा कुछ न , ज़िद्दी है , तू दिल को लाख समझा ले कहाँ इज़हार-ए-ग़म , कैसी शिकायत , कौन सी हसरत सभी जज़्बात क़ैदी हैं ज़ुबाँ पर हैं पड़े ताले परस्तिश करती है मतलब की बेहिस अजनबी दुनिया मिलेगा कुछ न तुझको इस जहाँ से , आरज़ू वाले जहाँ को एक दिन “ मुमताज़ ” तन्हा छोड़ देंगे हम हमें ढूँढेंगे हर जानिब हमारे चाहने वाले बेहिसी – भावना शून्यता , हस्सास – भावुक , महरूमी – कमी , रूह – आत्मा , साअत – घड़ी , परस्तिश – पूजा