ये आलम बेहिसी का, ये दिल-ए-हस्सास के छाले

ये आलम बेहिसी का, ये दिल-ए-हस्सास के छाले
तमन्ना की ये महरूमी हमें पागल न कर डाले

अभी तो ज़ख़्म देखे हैं बदन के, और ये आलम है
अभी देखे कहाँ तुम ने हमारी रूह के छाले

ये उलझी उलझी हर साअत, ये टूटा फूटा हर लम्हा
तमन्ना देखिये अब ज़िन्दगी को किस तरह ढाले

करेगा तो वही आख़िर जो इसने सोच रक्खा है
सुनेगा कुछ न, ज़िद्दी है, तू दिल को लाख समझा ले

कहाँ इज़हार-ए-ग़म, कैसी शिकायत, कौन सी हसरत
सभी जज़्बात क़ैदी हैं ज़ुबाँ पर हैं पड़े ताले

परस्तिश करती है मतलब की बेहिस अजनबी दुनिया
मिलेगा कुछ न तुझको इस जहाँ से, आरज़ू वाले

जहाँ को एक दिन मुमताज़ तन्हा छोड़ देंगे हम
हमें ढूँढेंगे हर जानिब हमारे चाहने वाले


बेहिसी भावना शून्यता, हस्सास भावुक, महरूमी कमी, रूह आत्मा, साअत घड़ी, परस्तिश पूजा 

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