एक सुनहरी दुनिया देखी ख़्वाबों की इल्हामी में

एक सुनहरी दुनिया देखी ख़्वाबों की इल्हामी में
आँख खुली तो सामने सच था, रोते थे नाकामी में

आज मोहब्बत बिकती है इस दुनिया के बाज़ारों में
चलो लगाएँ बोली हम भी प्यार की इस नीलामी में

इश्क़ में लाखों ग़म हैं माना, ज़िल्लत है, रुसवाई है
सारे आलम की राहत है इस मीठी बदनामी में

सारी उम्र की क़ीमत दे कर भी ये सौदा सस्ता था
हम यूँ ही अनमोल हो गए, बिक तो गए बेदामी में

एक तमन्ना के हाथों हम जाने कब से लुटते हैं
दो पल की राहत पाने को इस दौर-ए-हंगामी में

जाने बेताबी का कैसा दौर ये हैं मुमताज़ आया
उलझन में दिन बीत रहे हैं, रातें बेआरामी में

इल्हामी आकाशवाणी 

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