एक पुरानी ग़ज़ल - करप्शन मिटने वाला है
कहीं
चोरी, कहीं डाका, हर इक जानिब घोटाला है
चलो
अब आ गई बारी, करप्शन मिटने वाला है
सभी
माना धुले हैं दूध के, पर इसका क्या कीजे
न
वापस ला सके स्विस बैंक में जो माल डाला है
हैं
बेनीफ़िशियरी में कैसे कैसे आइटम देखो
भतीजा
है, कोई चाचा, कोई भाई है, साला है
ये
हसरत है किसी सूरत ज़रा बच्चे बहल जाएँ
किसी
मजबूर माँ ने आज फिर पानी उबाला है
जो
ये संसद के सेशन में बंटी है दाल जूतों में
ज़रूर
इस दाल में यारो कहीं तो कुछ तो काला है
हमें
क्या बाँट पाएंगे ये फ़ितनासाज़ बलवाई
हमारे
दिल में मस्जिद है, कलीसा है, शिवाला है
है
कोई आप, कोई आप का भी बाप निकला है
कोई
है कंस का मामा, कोई शैताँ की ख़ाला है
बटोरा
करते हैं दौलत ये दोनों हाथ से यारो
कहीं
“मुमताज़” डोनेशन, कहीं नोटों की माला है
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