ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी
हम को ले आई कहाँ तू ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी है जहाँ की एक इक शै आरज़ी ऐ ज़िन्दगी राह की हर एक मुश्किल कर चुकी आसान जब ख़त्म पर है अब सफ़र , क्यूँ थक गई ऐ ज़िन्दगी हैं जहाँ धोखे , छलावे , दर्द , आँसू , बेकसी आग के इक बेकराँ सैलाब सी ऐ ज़िन्दगी उम्र भर मैंने पिया है ज़हर जो तू ने दिया फिर भी क्यूँ मिटती नहीं ये तश्नगी , ऐ ज़िन्दगी जब बुरा था वक़्त मेरा साथ बस तू ने दिया इशरतों में अब कहाँ तू खो गई , ऐ ज़िन्दगी सारे मंज़र हो गए धुंधले , नज़र में बच रही क़तरा क़तरा बेबसी ही बेबसी ऐ ज़िन्दगी रफ़्ता रफ़्ता यार छूटे , खो गया हर हमसफ़र रह गई “ मुमताज़ ” बस इक बेकली , ऐ ज़िन्दगी शै – चीज़ , आरज़ी – नक़ली , बेकराँ – अथाह , तश्नगी – प्यास , इशरत – आराम , क़तरा क़तरा – बूँद बूँद