वुसअतों की ये तवालत, रास्ते हैं बेकराँ
वुसअतों की ये तवालत , रास्ते हैं बेकराँ ये सफ़र जारी रहा है कारवां दर कारवां लम्हा लम्हा वहशतें , हर गाम सौ नाकामियाँ रंग कितनी बार बदलेगा ये बेहिस आसमाँ ज़िन्दगी की कशमकश के दर्मियाँ उल्फ़त तेरी जलते सहरा की तपिश में जैसे कोई सायबाँ सारी हसरत , हर इरादा , हर जुनूँ , हर हौसला अब के तो सब कुछ बहा ले जाएंगी ये आंधियां याद की वीरान गलियों में हैं किस की आहटें कौन दाख़िल है हमारी खिल्वतों के दर्मियाँ आज मुद्दत बाद फिर उस राह से गुज़रे जहाँ चार सू बिखरे पड़े हैं आरज़ूओं के निशाँ क्यूँ ये शब् की सर्द तारीकी में हलचल मच गई किस की दर्दीली सदा से गूंजती हैं वादियाँ जाँ संभाली थी अभी "मुमताज़" मुश्किल से , कि फिर जाग उठी गुस्ताख़ हसरत , ज़िन्दगी है नौहा ख्वाँ वुसअतों कि ये तवालत-फैलाव का ये फैलाव , बेकराँ-अनंत , लम्हा- पल , वहशतें-बेचैनियाँ , गाम-क़दम , बेहिस-भावना रहित , सहरा-मरुस्थल , खिल्वतों के दरमियाँ-अकेलेपन में , दाख़िल-दख्ल देने वाला , सर्द तारीकी-ठंडा अँधेरा , नौहा ख्वाँ-दर्द भरे गीत गा रही है