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ग़ज़ल - मोहब्बतों के देवता, न अब मुझे तलाश कर

फ़ना हुईं  वो  हसरतें  वो  दर्द  खो  चूका  असर मोहब्बतों  के  देवता,  न  अब  मुझे  तलाश  कर भटक  रही  है  जुस्तजू  समा'अतें हैं  मुंतशर न  जाने  किस  की  खोज  में  है  लम्हा  लम्हा  दर  ब दर ये  खिल्वतें , ये  तीरगी , ये  शब है  तेरी  हमसफ़र इन  आरज़ी ख़यालों के  लरज़ते सायों  से  न  डर हयात ए बे  पनाह  पे  हर  इक  इलाज  बे  असर हैं  वज्द  में  अलालतें  परेशाँ हाल  चारागर बना  है  किस  ख़मीर  से  अना  का  क़ीमती क़फ़स तड़प  रही  हैं  राहतें , असीर  है  दिल  ओ  नज़र पड़ी  है  मुंह  छुपाए  अब  हर  एक  तशना आरज़ू तो  जुस्तजू  भी  थक  गई , तमाम  हो  गया  सफ़र तलातुम  इस  क़दर  उठा , ज़मीन  ए  दिल  लरज़  उठी शदीद  था  ये  ज़लज़ला , हयात  ही  गई  बिखर हर  एक  ज़र्ब ए वक़्त  से  निगारिशें  निखर  गईं हर  एक  पल  ने  डाले  हैं  निशान अपने  ज़ात  पर बस  एक  हम  हैं  और  एक  तन्हा  तन्हा  राह  है गुज़र  गया  वो  कारवां , बिछड़  गए  वो  हमसफ़र फ़ना होना= मिटना, ख़मीर= मटेरिअल, अना= अहम्, क़फ़स= पिंजरा, असीर= बंदी, तशना= प्यासी, आरज़ू= इच्छा, जुस्तजू= खोज, तमाम= ख़त्

तरही ग़ज़ल - हम झेलने अज़ीज़ों का हर वार आ गए

हम झेलने अज़ीज़ों का हर वार आ गए   सीना ब सीना बर सर ए पैकार आ गए ऐ ज़िन्दगी ,   ख़ुदारा हमें अब मुआफ़ कर हम तो तेरे सवालों से बेज़ार आ गए तमसील दुनिया देती थी जिन के ख़ुलूस   की उन को भी दुनियादारी के अतवार आ गए यारो , सितम ज़रीफी तो क़िस्मत की   देखिये कश्ती गई , तो हाथों में पतवार आ गए घबरा गए हैं अक्स की बदसूरती से अब हम आईनों के शहर में बेकार आ गए आवारगी का लुत्फ़  भी अब तो हुआ तमाम   अब तो सफ़र में रास्ते हमवार आ गए इतने हक़ीक़तों से गुरेज़ाँ हुए कि अब " हम ख्व़ाब बेचने सर ए बाज़ार आ गए" अब मुफलिसी की तो कोई क़ीमत न थी , कि हम " मुमताज़" आज बेच के दस्तार आ गए   ہم  جھیلنے  عزیزوں  کا  ہر  وار  آ  گئے   سینہ  بہ سینہ  بر سر  پیکار  آ  گئے   اے  زندگی , خدارا  ہمیں  اب  معاف  کر   ہم  تو  تیرے  سوالوں  سے  بیزار  آ  گئے   تمثیل  دنیا  دیتی  تھی  جن  کے  خلوص  کی   ان  کو  بھی  دنیاداری  کے  اطوار  آ  گئے   یارو  ستم  ظریفی  تو  قسمت  کی  دیکھئے   کشتی  گئی , تو  ہاتھوں  میں  پتوار  آ  گئے  

ग़ज़ल - तश्नगी को तो सराबों से भी छल सकते थे

तश्नगी को   तो   सराबों   से   भी   छल   सकते  थे   इक   इनायत   से  मेरे   ख़्वाब   बहल   सकते  थे   तुम   ने   चाहा   ही   नहीं   वर्ना कभी   तो  जानां   मेरे  टूटे   हुए   अरमाँ भी  निकल   सकते  थे   तुम  को  जाना   था   किसी   और   ही  जानिब , माना   दो   क़दम   फिर   भी  मेरे  साथ   तो  चल   सकते  थे   काविशों   में   ही  कहीं   कोई   कमी   थी  , वर्ना   ये   इरादे   मेरी   क़िस्मत   भी  बदल   सकते  थे   रास   आ   जाता   अगर   हम   को  अना   का   सौदा   ख़्वाब  आँखों   के   हक़ीक़त में  भी  ढल   सकते  थे   हम  को  अपनी   जो   अना  का  न   सहारा   मिलता   लडखडाए   थे  क़दम  यूँ  , के  फिसल   सकते  थे   इस   क़दर   सर्द   न  होती   जो  अगर  दिल   की   फ़ज़ा   आरज़ूओं   के  ये  अशजार भी  फल   सकते  थे   ये  तो  अच्छा   ही  हुआ  , बुझ   गई   एहसास   की  आग   वर्ना  आँखों  में  सजे   ख़्वाब  भी  जल   सकते  थे   हार   बैठे   थे  तुम्हीं   हौसला   इक  लग्ज़िश में   हम  तो   ' मुमताज़  ' फिसल  कर   भी  संभल   सकते   थे   تشنگ

ग़ज़ल - तड़प को हमनवा रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो

तड़प को हमनवा रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो ज़रा कुछ देर को माज़ी से भी कुछ सिलसिला कर लो सियाही जो निगल डाले सरासर रौशनी को भी तो फिर हक़ है कहाँ , बातिल है क्या , ख़ुद फ़ैसला कर लो इबादत नामुकम्मल है , अधूरा है हर इक सजदा असास-ए-ज़हन-ओ-दिल को भी न जब तक मुब्तिला कर लो थकन को पाँव की बेड़ी बना लेने से क्या होगा सफ़र आसान हो जाएगा थोड़ा हौसला कर लो बलन्दी भी झुकेगी हौसले के सामने बेशक जो ख़ू परवाज़ को काविश को अपना मशग़ला कर लो ज़माने भर से नालाँ हो , शिकायत है ख़ुदा से भी कभी “ मुमताज़ ” अपने आप से भी तो गिला कर लो تڑپ  کو  ہمنوا  روح  و  بطن  کو  کربلا  کر  لو   ذرا  کچھ  دیر  کو  ماضی  سے  بھی  کچھ  سلسلہ  کر  لو   سیاہی  جو  نگل  جاے  سراسر  روشنی  کو  بھی   تو  پھر  حق  ہے  کہاں  باطل  ہے  کیا  خود  فیصلہ  کر  لو   عبادت  نامکمّل  ہے , ادھورا  ہے  ہر  اک سجدہ   اساس  ذہن  و  دل  کو  بھی  نہ  جب  تک  مبتلا  کر  لو   تھکن  کو  پاؤں  کی  بیڑی  بنا  لینے  سے  کیا  ہوگا   سفر  آسان  ہو  جائگا , تھوڑا   حوصلہ  کر  لو   بلندی  بھی  جھکیگی  ح

तरही ग़ज़ल - ये शिद्दत तश्नगी की बढ़ रही है अश्क पीने से

  ये शिद्दत तश्नगी की बढ़ रही है अश्क पीने से हमें वहशत सी अब होने लगी मर मर के जीने से बड़ी तल्ख़ी है लेकिन इस में नश्शा भी निराला है हमें मत रोक साक़ी ज़िन्दगी के जाम पीने से हर इक हसरत को तोड़े जा रहे हैं रेज़ा रेज़ा हम उतर जाए ये बार-ए-आरज़ू शायद कि सीने से अभी तक ये फ़सादों की गवाही देती रहती है लहू की बू अभी तक आती रहती है खज़ीने से बिखर जाएगा सोना इस ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे पर ये मिटटी जगमगा उठ्ठेगी मेहनत के पसीने से हमारे दिल के शो ' लों से पियाला जल उठा शायद लपट सी उठ रही है आज ये क्यूँ आबगीने से ये जब बेदार होते हैं , निगल जाते हैं खुशियों को ख़लिश के अज़दहे लिपटे हैं माज़ी के दफीने से मचलती मौजों पे हम तो जुनूं को आज़माएंगे " जिसे साहिल की हसरत हो , उतर जाए सफ़ीने से" हमें तो ज़िंदगी ने हर तरह आबाद रक्खा है तो क्यूँ ' मुमताज़ ' अब लगने लगा है ख़ौफ जीने से आबगीने – काँच का ग्लास , बेदार – जागना , बार – बोझ 

ग़ज़ल - जल्वा था कि इक तूर-ए-दरख़्शाँ था अयाँ

जल्वा था कि इक तूर-ए-दरख़्शाँ था अयाँ नज़रों को संभालें ये रहा होश कहाँ JALWA THA KE IK TOOR E DARAKHSHAA'N THA AYAA'N NAZARO'N KO SAMBHAALE'N YE RAHA HOSH KAHA'N हसरत न कोई ख़्वाब न अब दर्द-ए-निहाँ बाक़ी न रहा ज़ीस्त का कोई इमकाँ HASRAT NA KOI KHWAAB NA AB DARD E NIHAA'N BAAQI NA ZEEST KA KOI IMAKAA'N इस राह से गुज़री थी वो ज़ौबार किरन हर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है अभी तक ताबाँ IS RAAH SE GUZRI THI WO ZOU BAAR KIRAN HAR NAQSH E KAF E PAA HAI ABHI TAK TAABA'N उल्फ़त का गुज़र दिल के सियहख़ाने से ये ज़ीस्त की राहों में तजल्ली का गुमाँ ULFAT KA GUZAR DIL KE SIYAHKHAANE SE YE ZEEST KI RAAHO'N ME'N TAJALLI KA GUMAA'N भीगी हुई रहती है सदा दिल की ज़मीं बारिश से धुला करता है हर दाग़ यहाँ BHEEGI HUI REHTI HAI SADAA DIL KI ZAMEE'N BAARISH SE DHULA KARTA HAI HAR DAAGH YAHA'N ख़ुर्शीद की किरनों ने छुआ बढ़ के ज़रा बिखरी है समंदर की सतह पर अफ़शाँ KHURSHEED KI KIRNO'N NE CHHUAA BADH KE ZARA BIKHRI HAI SAMANDAR KI

तरही ग़ज़ल - कहाँ तक न जाने मैं आ गई

कहाँ तक न जाने मैं आ गई गुम रात दिन के शुमार में कहीं क़ाफ़िला भी वो खो गया इन्हीं गर्दिशों के ग़ुबार में KAHA'N TAK NA JAANE MAI'N AA GAI, GUM RAAT DIN KE SHUMAAR ME'N KAHI'N QAAFILAA BHI WO KHO GAYA , INHI'N GARDISHO'N KE GHUBAAR ME'N न कोई रफ़ीक़ , न आशना , न अदू , न कोई रक़ीब है मैं हूँ कब से तन्हा खड़ी हुई इस अना के तंग हिसार में NA KOI RAFEEQ NA AASHNA, NA ADOO NA KOI RAQEEB HAI MAI'N HOO'N KAB SE TANHAA KHADI HUI, IS ANAA KE TANG HISAAR ME'N है अजीब फ़ितरत-ए-बेकराँ कि सुकूँ का कोई नहीं निशाँ कभी शादमाँ हूँ गिरफ़्त में कभी मुंतशिर हूँ फ़रार में HAI AJEEB FITRAT E BEKARAA'N KE SUKO'N KA KOI NISHAA'N NAHI'N KABHI SHAADNAA'N HOO'N GIRAFT ME'N, KABHI MUNTASHIR HOO'N FARAAR ME'N वो शब-ए-सियाह गुज़र गई मेरी ज़िन्दगी तो ठहर गई है अजीब सी कोई बेकली कोई कश्मकश है क़रार में WO SHAB E SIYAAH GUZAR GAI, MERI ZINDAGI TO THEHER GAI HAI AJEEB SI KOI BEKALI, KOI KASH MA KASH HAI QARAAR ME'N