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दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस

दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस आरज़ू होती नहीं है   टस   से   मस दौर - ए - हाज़िर का ये सरमाया है बस खुदसरी , मतलब परस्ती और हवस ये गुज़र जाता है ठोकर मार कर कब किसी का वक़्त पर चलता है बस आशियाँ की आंच पहुंची है यहाँ तीलियाँ तपती हैं , जलता है क़फ़स डूब   जाए   नाउम्मीदी   का   जहाँ आज ऐ बारान - ए - रहमत यूँ बरस सूखता जाता है दिल का आबशार ज़िन्दगी में अब कहाँ बाक़ी वो रस मैं करूँ फ़रियाद ? नामुमकिन , तो क्यूँ " कोई खाए मेरी हालत पर तरस" है यक़ीं ख़ुद पर तो फिर "मुमताज़" जी क्यूँ भला दिल में है इतना पेश - ओ - पस dil pe chalta hi nahiN ab koi bas aarzoo hoti nahiN hai tas se mas daur e haazir ka ye sarmaaya hai bas khudsari, matlab parasti aur hawas ye guzar jaata hai thokar maar kar kab kisi ka waqt par chalta hai bas aashiyaaN ki aanch pahonchi hai yahaN teeliyaaN tapti haiN, jalta hai qafas doob jaae naaummeedi ka jahan aaj ae baaraan e rahmat yuN baras sookhta jaata hai dil ...

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए जीत का इक ख़्वाब आँखों में सजाना चाहिए दिल के सोने को बनाना है जो कुंदन , तो इसे आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल में तपाना चाहिए रंज हो या उल्फ़तें हों , हसरतें हों या जुनूँ कोई भी जज़्बा हो लेकिन वालेहाना चाहिए पेट की आतिश में जल जाता है हर ग़म का निशाँ ज़िन्दगी कहती है , मुझ को आब-ओ-दाना चाहिए दिल तही , आँखें तही , दामन तही , लेकिन मियाँ आरज़ूओं को तो क़ारूँ का ख़ज़ाना चाहिए अक़्ल कहती है , क़नाअत कर लूँ अपने हाल पर और बज़िद है दिल , उसे सारा ज़माना चाहिए रफ़्ता रफ़्ता हर ख़ुशी “मुमताज़” रुख़सत हो गई अब तो जीने के लिए कोई बहाना चाहिए आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल - लगातार जद्द-ओ-जहद की आग, आब-ओ-दाना - दाना -पानी, क़नाअत - संतोष, बज़िद - ज़िद पर आमादा, रफ़्ता रफ़्ता - धीरे-धीरे, रुख़सत - विदा zahn-e-behis ko jagaa de wo taraana chaahiye jeet ka ik khwaab aankhoN meN sajaana chaahiye dil ke sone ko banaana hai jo kundan, to ise aatish-e-jahd-e-musalsal meN tapaana chaahiye ranj ho ya ulfateN hoN, hasrateN hoN ya junooN koi bhi jazba h...

ज़ख़्म महरूमी का भरने से रहा

ज़ख़्म   महरूमी   का   भरने   से   रहा " कर्ब   का   सूरज   बिखरने   से   रहा" ज़ीस्त   ही   गुज़रे   तो   अब   गुज़रे   मियाँ वो   हसीं   पल   तो   गुज़रने   से   रहा खेलते   आए   हैं   हम   भी   जान   पर मुश्किलों   से   दिल   तो   डरने   से   रहा फ़ैसला   हम   ही   कोई   कर   लें   चलो वो   तो   ये   एहसान   करने   से   रहा पल   ख़ुशी   के   पर   लगा   कर   उड़   गए वक़्त   ही   ठहरा , ठहरने   से   रहा है   ग़नीमत   लम्हा   भर   की   भी   ख़ुशी अब   मुक़द्दर   तो   सँवरने   से   रहा जोश   की   गर्मी   से   पिघलेगा   क़फ़स अब   जुनूँ   घुट   घुट   के   मरने   से ...

हम पर जो हैं अज़ीज़ों के एहसान मुख़्तलिफ़

हम पर जो हैं अज़ीज़ों के एहसान मुख़्तलिफ़ लगते रहे हैं हम पे भी बोहतान मुख़्तलिफ़ हर एक रहनुमा का है ऐलान मुख़्तलिफ़ हैं मसलेहत के थाल में ग़लतान मुख़्तलिफ़ बिखरे हुए हैं ज़ीस्त के हैजान मुख़्तलिफ़ टुकड़ों में दिल के रहते हैं अरमान मुख़्तलिफ़ होगा क़दम क़दम पे इरादों का इम्तेहाँ इस रास्ते में आएँगे बोहरान मुख़्तलिफ़ खुलते रहे हयात के हर एक मोड़ पर तक़दीर की किताब के उनवान मुख़्तलिफ़ इस्लाम आज कितने ही ख़ानों में बँट गया मसलक जुदा जुदा हुए , ईमान मुख़्तलिफ़ ये और बात , हारा नहीं हम ने हौसला गुजरे हमारी राह से तूफ़ान मुख़्तलिफ़ धोका छलावा ज़ख़्मी अना और शिकस्ता दिल “मुमताज़” हैं ख़ुलूस के नुक़सान मुख़्तलिफ़ मुख़्तलिफ़ – अलग अलग , बोहतान – झूठा इल्ज़ाम , रहनुमा – लीडर , मसलेहत – पॉलिसी , ग़लतान – लुढ़कने वाला , ज़ीस्त – ज़िन्दगी , हैजान – जोश , बोहरान – अड़चन , हयात – ज़िन्दगी , उनवान – शीर्षक , मसलक – रास्ता , तरीका , अना – अहं , ख़ुलूस – सच्चाई ham par jo hain azizoN ke ehsaan mukhtalif lagte rahe haiN ham pe bhi bohtaan mukhtalif har ek rahnuma ka hai ailaan mukh...

ज़मीं क्या, आसमानों पर भी है चर्चा मोहम्मद का

ज़मीं क्या , आसमानों पर भी है चर्चा मोहम्मद का तभी तो रश्क ए जन्नत बन गया बतहा मोहम्मद का इबादत पर नहीं , उन की शफ़ाअत पर भरोसा है शफ़ाअत हश्र में होगी , ये है वादा मोहम्मद का जहाँ तो क्या , उन्हें रब्ब ए जहाँ महबूब रखता है ये आला मरतबा दुनिया में है तनहा मोहम्मद का जिसे नूर ए अज़ल के रंग से ढाला है ख़ालिक़ ने कोई सानी तो क्या , देखा नहीं साया मोहम्मद का वो हैं खत्मुन नबी , हादी ए कुल , कुरआन सर ता पा है नस्ल ए आदमी के वास्ते तोहफ़ा मोहम्मद का वो मख़्लूक़ ए ख़ुदा के वास्ते रहमत ही रहमत हैं मगर इंसान ने एहसाँ नहीं माना मोहम्मद का लकीर इक नूर की खिंचती गई , गुज़रे जिधर से वो ज़मीं से आसमाँ तक देखिये जलवा मोहम्मद का zameeN kya, aasmaanoN par bhi hai charcha Mohammad ka tabhi to rashk e jannat ho gaya bat'haa Mohammad ka ibaadat par nahin, un ki shafaa'at par bharosa hai shafaa'at hashr meN hogi, ye hai vaada Mohammad ka jahaN to kya, unheN rabb e jahaN mahboob rakhta hai ye aala martaba duniya meN hai tanhaa Mohammad ka ...

नूर अपना मेरी हस्ती में ज़रा हल कर दे

नूर   अपना   मेरी   हस्ती   में   ज़रा   हल   कर   दे इक   ज़रा   हाथ   लगा   दे , मुझे   संदल   कर   दे ज़ेर-ओ-बम   राह   के   चलने   नहीं   देते   मुझ   को तू   जो   चाहे   तो   हर   इक   राह   को   समतल   कर   दे यूँ   तो   हर   वक़्त   चुभा   करती   है   इक   याद   मुझे शाम   आए   तो   मुझे   और   भी   बेकल   कर   दे तेरे   शायान-ए-ख़ुदाई   हों   अताएँ   तेरी सारी   महरूमी   को   यारब   तू   मुकफ़्फ़ल   कर   दे ज़ुल्म   की , यास   की , बदबख्ती की , महरूमी   की " सारी   दुनिया   को   मेरी   आँखों   से   ओझल   कर   दे" अब   न   "मुमताज़" अधूरी   रहे   हसरत   कोई मेरे   मालिक ...

हर कहीं है अक्स तेरा हर कली में तेरी बू

हर कहीं है अक्स तेरा हर कली में तेरी बू इस ज़मीं से उस ज़माँ तक हर कहीं बस तू ही तू हूँ गुनह सर ता पा लेकिन फिर भी ऐ मेरे ग़फ़ूर मासियत है मेरी आदत , और रहमत तेरी ख़ू कायनातों के भँवर में फिर रहे हैं बेक़रार जाने ले जाए कहाँ अब हम को तेरी आरज़ू ऐ मेरे मालिक , तेरी रहमत हमें दरकार है भर गया है इस ज़मीं पर अब गुनाहों का सुबू ज़र्रे ज़र्रे पर अयाँ हैं नक़्श हर तख़्लीक़ के अक़्ल - ए - आवारा फिरे है हैराँ हैराँ , कू ब कू तेरे दर तक आ के भी दामन रहा ख़ाली मेरा तेरी रहमत को सदा देती है मेरी आरज़ू या इलाही , हम्द तेरी मैं करूँ कैसे रक़म चाहिए दिल की तहारत , उँगलियाँ हों बावज़ू ढाँप ले मेरे गुनाहों को तू अपने साए से रक्खी है " मुमताज़ " की तू ने हमेशा आबरू   har kahiN hai aks tera har kali meN teri bu is zameeN se us zamaaN tak har kahiN bas tu hi tu huN gunah sar taa paa lekin phir bhi aye mere ghafoor maasiyat hai t...