लौट जाएँगी ये लहरें, सीपियाँ रह जाएँगी
लौट जाएँगी ये लहरें , सीपियाँ रह जाएँगी वक़्त के हाथों में कुछ कठपुतलियाँ रह जाएँगी पासबानी शर्त है गुलशन की , वर्ना एक दिन इस फ़ज़ा में रक़्स करती आँधियाँ रह जाएँगी फिर जलाने को यहाँ बाक़ी रहेगा क्या भला जल चुकेगा जब चमन , बस बिजलियाँ रह जाएँगी सरफ़रोशी बढ़ चलेगी अपनी मंज़िल की तरफ़ और फिर लहरों पे जलती कश्तियाँ रह जाएँगी वक़्त है , अब भी संभल जा रहबर-ए-मिल्लत , कि फिर अपने हाथों में फ़क़त बदहालियाँ रह जाएँगी इन्क़िलाब आएगा , ये मोहरे उलट देंगे बिसात आप की शतरंज की सब बाज़ियाँ रह जाएँगी जब जिगर कि आग भड़केगी , पिघल जाएगा ज़ुल्म वो भी दिन आएगा , खुल कर बेड़ियाँ रह जाएँगी रिज़्क़ की ऐसी ही नाक़दरी रही , तो एक दिन दाने दाने को तरसती बालियाँ रह जाएँगी लौट भी आया अगर वो तो यहाँ क्या पाएगा इस चमन में जब बरहना डालियाँ रह जाएँगी एक बिस्तर ख़ाक का , और बस ये दो गज़ की जगह ये तेरी “ मुमताज़ ” सब तैयारियाँ रह जाएँगी