ज़िन्दगी मेरे लिए हो गई बोहताँ जानाँ
ज़िन्दगी मेरे लिए हो गई बोहताँ जानाँ मुझ पे कितना है बड़ा ये तेरा एहसाँ जानाँ तेरे वादे , तेरी क़समें तेरी उल्फ़त , तेरा दिल हर हक़ीक़त है मेरे सामने उरियाँ जानाँ इस कहानी में मेरे ख़ूँ की महक शामिल है और तेरा नाम है अफ़साने का उनवाँ जानाँ दिल पे इक अब्र सा छाया था न जाने कब से आज तो टूट के बरसा है ये बाराँ जानाँ इक वही बात जो कानों में कही थी तू ने दिल अभी तक है उसी बात का ख़्वाहाँ जानाँ अब तो ता दूर कहीं कोई नहीं राह-ए-फ़रार खोल दे अब तो मेरे पाँव से जौलाँ जानाँ बाद अज़ इसके बहुत तंग है जीना लेकिन फ़ैसला तर्क-ए-तअल्लुक़ का है आसाँ जानाँ पहले दिल ज़ख़्मी था , अब रूह तलक ज़ख़्मी है तू ने क्या ख़ूब किया है मेरा दरमाँ जानाँ अब यहाँ आ के जुदा होती हैं राहें अपनी अब क़राबत का नहीं कोई भी इमकाँ जानाँ इश्क़ में अब वो जुनूँ है न वफ़ा में वो ग़ुरूर अब ये शै दुनिया में “ मुमताज़ ” है अर्ज़ाँ जानाँ बोहताँ-झूठा इल्ज़ाम , उरियाँ-नग्न , उनवाँ-शीर्षक , अब्र-बादल , बाराँ-बारिश , ख़्वाहाँ-इच्छुक , राह-ए-फ़रार-भागने का रास्ता , जौलाँ-बेड़ी , तर्क-ए...