नज़्म-चाहत



 तुम्हारी आरज़ू में रंग भरना चाहती हूँ मैं
तुम्हें जी भर के जानाँ प्यार करना चाहती हूँ मैं

ये लंबा फ़ासला आख़िर मुझे कैसे गवारा हो
तुम्हारी वहशतों को कुछ मेरे दिल का सहारा हो
समेटूँ अपने दामन में तुम्हारे दिल के सन्नाटे
निगाहों से मैं चुन लूँ सब तुम्हारी राह के काँटे

मेरी हर जुस्तजू तुम से शुरू हो, खत्म तुम पर हो
तुम्ही हो ज़िन्दगी मेरी तुम्ही मेरे मुक़द्दर हो
तुम्हारे काम न आए तो मेरी ज़िन्दगी क्या है
हर इक सजदा मेरा बेकार है ये बंदगी क्या है

ख़ुशी ले लो मेरी मुझ को तुम अपने सारे ग़म दे दो
मुझे इतनी जगह तो अपने दिल में कम से कम दे दो

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