गीत – दर्द के दीप जले
दर्द के दीप जले हमसफ़र छोड़ चले हम को जीना है मगर जब तलक साँस चले वक़्त की धूप कि ढलती जाए ज़िन्दगी है कि पिघलती जाए कोई साथी , न सहारा , न सुराग़ और ये राह कि चलती जाए कैसे तय हो ये सफ़र कब तलक कोई चले कोई जीवन का ठिकाना भी नहीं अब वो पहला सा ज़माना भी नहीं कोई जीने का बहाना भी नहीं अब तो वो दर्द पुराना भी नहीं आस आँखों से बहे मिले राहों से गले नींद भी दूर मेरी आँखों से चाँद भी दूर मेरी रातों से मेरी मेहमान है अब तारीकी और शनासाई है सन्नाटों से रौशनी होती नहीं कितनी भी रूह जले तारीकी – अँधेरा , शनासाई – पहचान