जो था तेरे लिए बस उस सफ़र की याद आती है
जो
था तेरे लिए बस उस सफ़र की याद आती है
हमें
हर लम्हा, हर पल अपने घर की याद आती है
तसव्वर
में जो यादों के सफ़र पर हम निकलते हैं
शिकस्ता
पाँव, ज़ख़्मी बाल-ओ-पर की याद आती हैं
बिछड़ते
वक़्त वो हर बार जो अशकों से धुलती है
वो
हसरत की नज़र, बस उस नज़र की याद आती है
जब
अपने रेशमी बिस्तर पे हम करवट बदलते हैं
हमें
उस ज़ख़्मी, बोसीदा खंडर की याद आती है
वो
जिसकी आँच से दिल का हर इक ज़र्रा सितारा था
मोहब्बत
के उसी ठंडे शरर की याद आती है
जो
वापस अर्श से मेरी दुआएँ लौट आती हैं
जो
था मेरी दुआ में उस असर की याद आती है
जो
हम यादों की टेढ़ी मेढ़ी गलियों से गुज़रते हैं
हमें
अक्सर तुम्हारी रहगुज़र की याद आती है
हमें
भी मिल गया कोई, तुम्हें भी मिल गया कोई
जो
तन्हा रह गया, बस उस शजर की याद आती है
भटकते
फिरते हैं “मुमताज़” इन गलियों में हम अक्सर
किधर
का है सफ़र, जाने किधर की याद आती है
तसव्वर
–
कल्पना, शिकस्ता – थका हुआ, बोसीदा – कमजोर, शरर – चिंगारी, शजर – पेड़
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