खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम


खुली नसीब की बाहें मरोड़ देंगे हम
कि अब के अर्श का पाया झिंझोड़ देंगे हम
کھلی نصیب کی باہیں مروڑ دینگے ہم
کہ اب کے عرش کا پایا جھنجوڑ دینگے ہم

जुनूँ बनाएगा बढ़ बढ़ के आसमान में दर
ग़ुरूर अब के मुक़द्दर का तोड़ देंगे हम
جنوں بنائیگا بڑھ بڑھ کے آسمان میں در
غرور اب کے مقدر کا توڑ دینگے ہم

अभी उड़ान की हद भी तो आज़मानी है
फ़लक को आज बलंदी में होड़ देंगे हम
ابھی اُڑان کی حد بھی تو آزمانی ہے
فلک کو آج بلندی میں ہوڑ دینگے ہم

है मसलेहत का तक़ाज़ा तो आओ ये भी सही
हिसार-ए -आरज़ू थोडा सिकोड़ देंगे हम
ہے مصلحت کا تقاضا تو آؤ یہ بھی سہی
حصارِ آرزو تھوڑا سکوڑ لینگے ہم

जो ज़िद पे आए तो इक इन्क़ेलाब लाएँगे
जेहाद-ए -वक़्त को लाखों करोड़ देंगे हम
جو ضد پہ آئے تو اک انقلاب لائینگے
جہادِ وقت کو لاکھوں کروڑ دینگے ہم

इरादा कर ही लिया है तो जान भी देंगे
इस इम्तेहाँ में लहू तक निचोड़ देंगे हम
ارادہ کر ہی لیا ہے تو جان بھی دینگے
اس امتحاں میں لہو تک نچوڑ دینگے ہم

उठेगा दर्द फिर इंसानियत के सीने में
हर एक दिल का फफोला जो फोड़ देंगे हम
اٹھیگا درد پھر انسانیت کے سینے میں
ہر ایک دل کا پھپھولہ جو پھوڑ دینگے ہم

समेट  लेंगे सभी दर्द के सराबों को
शिकस्ता ज़ात के टुकड़ों को जोड़ देंगे हम
سمیٹ لینگے سبھی درد کے سرابوں کو
شکستہ ذات کے ٹکڑوں کو جوڑ دینگے ہم

अगर यकीन है खुद पर तो ये भी मुमकिन है
"हवा के रुख को भी जब चाहें मोड़ देंगे हम"
اگر یقین ہے خود پر تو یہ بھی ممکن ہے
"ہوا کے رخ کو بھی جب چاہیں موڑ دینگے ہم"

अना भी आज तो "मुमताज़" कुछ है शर्मिंदा
चलो फिर आज तो ये जिद भी छोड़ देंगे हम
انا بھی آج تو ممتازؔ کچھ ہے شرمندہ
چلو پھر آج تو یہ ضد بھی چوڑ دینگے ہم

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