धड़कनें चुभने लगी हैं, दिल में कितना दर्द है
धड़कनें चुभने लगी हैं, दिल में कितना दर्द है
टूटते दिल की सदा भी आज कितनी सर्द है
बेबसी के ख़ून से धोना पड़ेगा अब इसे
वक़्त के रुख़ पर जमी जो बेहिसी की गर्द है
बोझ फ़ितनासाज़ियों का ढो रहे हैं कब से हम
जिस की पाई है सज़ा हम ने, गुनह नाकर्द है
ज़ब्त की लू से ज़मीं की हसरतें कुम्हला गईं
धूप की शिद्दत से चेहरा हर शजर का ज़र्द है
छीन ले फ़ितनागरों के हाथ से सब मशअलें
इन दहकती बस्तियों में क्या कोई भी मर्द है?
दिल में रौशन शोला-ए-एहसास कब का बुझ गया
हसरतें ख़ामोश हैं, अब तो लहू भी सर्द है
अब कहाँ जाएँ तमन्नाओं की गठरी ले के हम
हर कोई दुश्मन हुआ है, मुनहरिफ़ हर फ़र्द है
जुस्तजू कैसी है, किस शय की है मुझ को आरज़ू
मुस्तक़िल बेचैन रखता है, जुनूँ बेदर्द है
तुम तअस्सुब का ज़रा पर्दा हटा कर देख लो
अब तुम्हें हम क्या बताएँ कौन दहशत गर्द है
ऐसा लगता है कि सदियों से ये दिल वीरान है
आरज़ूओं पर जमी "मुमताज़" कैसी गर्द है
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