सारी दुनिया से उलझ कर, ग़म से टकराने के बाद


सारी दुनिया से उलझ कर, ग़म से टकराने के बाद
अक़्ल तो आती है लेकिन ठोकरें खाने के बाद
ساری دنیا سے الجھ کر، غم سے ٹکرانے کے بعد
عقل تو آتی ہے لیکن ٹھوکریں کھانے کے بعد

क्या बहारें आएंगी, गुलशन के जल जाने के बाद
खिल नहीं सकता है गुल इक बार मुरझाने के बाद
کیا بہاریں آئینگی گلشن کے جل جانے کے بعد
کھل نہیں سکتا ہے گل اک بار مرجھانے کے بعد

ज़ब्त लाज़िम है, मगर जब हद से बढ़ जाए तड़प
क्यूँ छलक जाए न फिर पैमाना भर जाने के बाद
ضبط لازم ہے مگر جب حد سے بڑھ جائے تڑپ
کیوں چھلک جائے نہ پھر پیمانہ بھر جانے کے بعد

ज़र्रे ज़र्रे पर जबीं फोड़ी तो तू हासिल हुआ
तेरा दर पा ही लिया काबा-ओ-बुतख़ाने के बाद
ذرے ذرے پر جبیں پھوڑی تو تو حاصل ہوا
تیرا در پا ہی لیا کعبہ و بتخانے کے بعد

दफ़्न रहने दो हमारी रूह का कर्ब-ए-बला
ग़म का क़िस्सा क्या कहें खुशियों के अफ़साने के बाद 
دفن رہنے دو ہماری روح کا کربِ بلا
غم کا قصہ کیا کہیں خوشیوں کے افسانے کے بعد

वक़्त-ए-रुख़सत सब्र की हम को हिदायत की, मगर
फूट कर वो रो दिया फिर हम को समझाने के बाद
وقتِ رخصت صبر کی ہم کو ہدایت کی مگر
پھوٹ کر وہ رو دیا پھر ہم کو سمجھانے کے بعد

इस फ़साने का भी आख़िर इख़्तेताम आ ही गया
छंट गया अब्र-ए-बहारां लम्हा भर छाने के बाद
اس فاسانے کا بھی آخر اختتام آ ہی گیا
چھٹ گیا ابرِ بہاراں لمحہ بھر چھانے کے بعد

जी उठे हम जब से सीखा हम ने मरने का हुनर
"ज़िन्दगी को हम ने पाया, वो भी मर जाने के बाद"
جی اُٹھے ہم جب سے سیکھا ہم نے مرنے کا ہنر
"زندگی کو ہم نے پایا وہ بھی مر جانے کے بعد"

क्या कहें "मुमताज़" किस मंज़िल प् है अपना सफ़र
है ख़ला, बस इक ख़ला, अब दिल के वीराने के बाद
کیا کہیں ممتازؔ کس منزل پہ ہے اپنا سفر
ہے خلا، بس اک خلا اب دل کے ویرانے کے بعد
जबीं – माथा, कर्ब-ए-बला – बहुत तेज़ दर्द, इख़्तेताम – अंत, अब्र-ए-बहारां – वसंत का बादल, ख़ला – खालीपन

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