जूनून सा है , कभी इन्क़ेलाब जैसा है
जूनून सा है , कभी इन्क़ेलाब जैसा है हर इक नज़ारा रह - ए - दिल का ख़्वाब जैसा है मैं इस सराब ए तज़बज़ुब में कब तलक भटकूँ तेरा ये लुत्फ़ - ओ - करम भी अज़ाब जैसा है लगी है अब्र को शायद वो मस्त मस्त नज़र जो अब के बरसा है पानी , शराब जैसा है न जाने कैसे उठे , कैसे , कब , कहाँ टूटे ये हस्त - ओ - बूद का आलम हुबाब जैसा है ज़रा सी बात पे हलचल सी मचने लगती है ये दिल भी क्या है , किसी सतह - ए - आब जैसा है मुझे गुनाह - ए - मोहब्बत का ऐतराफ़ तो है गुनाह ये भी मगर इक सवाब जैसा है मेरे सवाल के बदले वो यूँ सवाल करे कि हर सवाल भी गोया जवाब जैसा है हर एक क़तरा बड़ी तशनगी समेटे है " ये क्या सितम है कि दरिया सराब जैसा है " न कोई रब्त , न कुछ सिलसिला हवादिस में सफ़र हयात का " मुमताज़ " ख़्वाब जैसा