दिल तुम्हें ख़ुद ही बता देगा कि रग़बत क्या है
दिल तुम्हें ख़ुद ही बता देगा कि रग़बत क्या है
पूछते क्या हो मेरी जान मोहब्बत क्या है
है मयस्सर जिसे सब कुछ वो भला क्या समझे
किसी मुफ़लिस से ये पूछो कि ज़रूरत क्या है
कोई अरमाँ न रहा दिल में तो क्या देंगे जवाब
पूछ बैठा जो ख़ुदा हम से कि हाजत क्या है
हुस्न है, प्यार है, ईसार का इक
दरिया है
कोई समझा ही कहाँ है कि ये औरत क्या है
दर ब दर बेचती फिरती है जो बाज़ारों में
इक तवायफ़ से ज़रा पूछो कि अस्मत क्या है
मेरा महबूब उठा रूठ के पहलू से मेरे
कोई बतलाए कि अब और क़यामत क्या है
कहकशाँ डाल दी क़दमों में ख़ुदा ने मेरे
दर ब दर फिरने की “मुमताज़” को हाजत क्या है
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