तबाही का सबब है, फिर भी इन्साँ की ज़रुरत है
तबाही का सबब है , फिर भी इन्साँ की ज़रुरत है मोहब्बत क्या क़यामत , क्या बला है , कैसी आफ़त है कोई हसरत , न कोई दर्द है , ग़म है , न चाहत है मेरे किरदार में हर सिम्त बस ख़िल्वत ही ख़िल्वत है क़दम उठते नहीं , अब हर इरादा टूटने को है जुनूँ की आज़माइश है , तमन्नाओं की शामत है जुनूँ हो , इश्क़ हो , वहशत हो , नफ़रत हो , कि हसरत हो मुझे ऐ ज़िन्दगी तेरे हर इक तेवर से नफ़रत है मैं क़ैद ए इश्क़ से जानाँ तुम्हें आज़ाद करती हूँ चले जाओ , कि तुम को मेरे जज़्बों की इजाज़त है ख़ता तो मैं ने कोई की नहीं , ये याद है मुझ को मुझे अपनी पशेमानी पे जानाँ सख़्त हैरत है बड़ी मेहनत से मैं ने ये जहान ए दिल संवारा है ये उलझन और ये बेचैनी मेरी चाहत की उजरत है यही एहसास मुझ को चैन से रहने नहीं देता जुनूँ की चाशनी में थोड़ी वहशत की हलावत है बिखरती जा रही हैं ज़िन्दगी की अब सभी पर्तें हर इक जज़्बे की , हर हसरत की कुछ ऐसी ही हालत है अभी "मुमताज़" किस दिल से सुनूं अफ़साना ए उल्फ़त अभी बीनाई नालां है , अभी ज़ख़्मी समाअत है सबब-कारण , पशेमानी-शर्मिंदगी , उजरत-मज़दूर