नज़्म - गुजारिश
न जाने कितनी बातें तुम से कहना चाहती हूँ मैं न जाने कितने अंदेशे तुम्हारे दिल में भी होंगे तुम्हारी धड़कनों में छुप के रहना चाहती हूँ मैं तुम्हारी आँख में भी ख़्वाब अब तक तो यही होंगे मगर अब वक़्त बदला है , कहाँ वो रात दिन जानाँ हमारे दरमियाँ अब कितनी ही सदियों की दूरी है नई राहें , नए मंज़र , नया है ये सफ़र जानाँ तो हसरत को नया इक पैरहन देना ज़रूरी है अभी भी ज़ह्न पर माना तेरी चाहत का डेरा है हक़ीक़त है , तेरी यादें मुझे बेचैन करती हैं मोहब्बत की जगह लेकिन ख़ला है अब मेरे दिल में निगाहें तेरी राहों की तरफ़ जाने से डरती हैं ख़ुदी ने डाल रक्खे हैं मेरे जज़्बात पर ताले अना ने डाल रक्खी हैं तेरे पाओं में ज़ंजीरें मेरी साँसों की लय पर आज वहशत रक़्स करती है अभी जज़्बात बोझल हैं , अभी ज़ख़्मी हैं तहरीरें हक़ीक़त के दोराहे पर खड़े हैं आज हम जानाँ तुम्हारी राह वो है और मुझे इस सिम्त जाना है तुम्हारी राह में शायद बहारें रक़्स करती हों ख़िज़ाँ की वहशतों में हाँ मगर मेरा ठिकाना है तक़ाज़ा मस्लेहत का है , ख़ुशी से हम बिछड़ जाएँ न अब हम याद रक्खें और न इक दूजे को या