होने का मुझे कोई तो एहसास दिला याद
होने का मुझे कोई तो
एहसास दिला याद
फिर मुझको दिखा आईना, फिर मुझको रुला
याद
फिर मैंने किया क़स्द
तेरी राह का ऐ दोस्त
कोई भी मुझे फ़ैसला अपना
न रहा याद
ये कर्ब, ये बेचैनी, ये वहशत, ये उम्मीदें
बच कर मैं कहाँ तुझसे
रहूँ, कुछ तो बता याद
यूँ हम ने मिटा डाला है
हर एक निशाँ अब
अपनी ही तड़प याद, न तेरी ही अदा
याद
रोई है वफ़ा फूट के अपनी
ही ख़ता पर
जो तू ने कभी की थी वो
आई है दुआ याद
चेहरा तो शनासा है प
बेगाना है दिल क्यूँ
लगता है मेरा कौन तू, करने दे ज़रा याद
इक लहर सी सीने में उठी, डूब गया दिल
लगता है मेरे माज़ी ने
फिर मुझको किया याद
क्यूँ टूटा है “मुमताज़” हमारा ये नशेमन
तक़सीर तेरी याद न अपनी
ही ख़ता याद
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