इस दर्द की शिद्दत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते बरहक़ है अगर मौत तो मर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT SE GUZAR KYUN NAHIN JAATE BAR HAQ HAI AGAR MAUT TO MAR KYUN NAHIN JAATE कब तक मैं संभालूँ ये मेरी ज़ात के टुकड़े रेज़े ये हर इक सिम्त बिखर क्यूँ नहीं जाते KAB TAK MAIN SAMBHALOON YE MERI ZAAT KE TUKDE REZE YE HAR IK SIMT BIKHAR KYUN NAHIN JAATE क़ातिल भी , गुनहगार भी , मुजरिम भी हमीं क्यूँ इल्ज़ाम किसी और के सर क्यूँ नहीं जाते QAATIL BHI GUNAHGAAR BHI MUJRIM BHI HAMEEN KYUN ILZAAM KISI AUR KE SAR KYUN NAHIN JAATE डरते हो तो अब तर्क-ए-इरादा भी तो कर लो हिम्मत है तो उस पार उतर क्यूँ नहीं जाते DARTE HO TO AB TARK E IRAADA BHI TO KAR DO HIMMAT HAI TO US PAAR UTAR KYUN NAHIN JAATE अब दर्द की शिद्दत भी मेरा इम्तेहाँ क्यूँ ले अब ज़ख़्म ये हालात के भर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT BHI MERA IMTEHAAN KYUN LE AB ZAKHM YE HAALAT KE BHAR KYUN NAHIN JAATE ये सर्द तमन्नाएँ कहीं जान न ले लें एहसास के शो ’ लों से गुज़र क्यूँ नहीं जाते YE SARD TAMANN...
ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते मिट जाते हैं , हम फ़रियाद नहीं करते चेहरा कुछ कहता है , लब कुछ कहते हैं शायद वो दिल से इरशाद नहीं करते आ पहुंचे हैं शहर - ए - ख़ुशी में उकता कर अब वीराने हम आबाद नहीं करते हर मौक़े पर गोहर लुटाना क्या मानी अश्कों को यूं ही बरबाद नहीं करते हर हसरत का नाहक़ खून बहा डालें इतनी भी अब हम बेदाद नहीं करते देते हैं दिल , लेकिन खूब सहूलत से अब तो कोहकनी फरहाद नहीं करते ज़हर खुले ज़ख्मों में बनने लगता है " हम गुज़रे लम्हों को याद नहीं करते" बरसों रौंदे जाते हैं , तब उठते हैं यूँ ही हम "मुमताज़" फ़साद नहीं करते zaalim ke dil k bhi shaad nahiN karte mit jaate haiN, ham fariyaad nahiN karte chehra kuchh kehta hai, lab kuchh kehte haiN shaayad wo dil se irshaad nahiN karte aa pahnche haiN shehr e khushi meN ukta kar ab veeraane ham aabaad nahiN karte har mau...
ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने , दहशत को यलग़ार कहे अपने हक़ से भी ग़ाफ़िल हो , कौन उसे बेदार कहे ZULM KO APNI QISMAT MAANE DAHSHAT KO YALGHAAR KAHE APNE HAQ SE BHI GHAAFIL HO KAUN USE BEDAAR KAHE ज़ख़्मों को बेक़ीमत समझे , अश्कों को ऐयार कहे ऐसे बेपरवा से अपने दिल की जलन बेकार कहे ZAKHMON KO BEQEEMAT SAMJHE ASHKON KO AIYYAR KAHE AISE BEPARWAAH SE APNE DIL KI JALAN BEKAAR KAHE अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है , अपनी अपनी फ़ितरत है मैं इज़हार-ए-हाल करूँ तो तू उसको तक़रार कहे APNA APNA ZAUQ E NAZAR HAI APNI APNI FITRAT HAI MAIN IZHAAR E HAAL KA R UN TO TU US KO TAQRAAR KAHE सीख गया है जीने के अंदाज़ जहान-ए-हसरत में हर इक बात इशारों में अब तो ये दिल-ए-हुशियार कहे SEEKH GAYA HAI JEENE KE ANDAAZ JAHAAN E HASRAT MEN HAR IK BAAT ISHAARON MEN AB TO YE DIL E HUSHIYAAR KAHE जाने दो “ मुमताज़ ” मैं क्या हूँ , पागल हूँ , सौदाई हूँ मैं झूठी , मेरी बातें झूठी , मानो जो अग़यार कहे JAANE DO 'MUMTAZ', MAIN KYA HOON, PAAGAL HOON SAUDAAI HOON MAIN JHOOTI MERI BAA...
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