क्या क्या अजीब रंग बदलती है ज़िन्दगी
क्या क्या अजीब रंग बदलती है ज़िन्दगी हर लम्हा नए रूप में ढलती है ज़िन्दगी तू जब चले तो तेरी हर आहट के साथ साथ ख़ामोश , दबे पाओं से चलती है ज़िन्दगी साँसों की आँच , जिस्म की लौ और वफा की आग इक शमअ की मानिंद पिघलती है ज़िन्दगी तेरा सुकूत , तेरी हँसी , तेरी गुफ़्तगू तेरे लबों की छाँव में पलती है ज़िन्दगी लो शब हुई तमाम , नई सहर आ गई बेदार हो चुकी है संभलती है ज़िन्दगी गुज़रा है जिस तरफ़ से मोहब्बत का क़ाफ़िला उस रास्ते की ख़ाक में पलती है ज़िन्दगी मुट्ठी में बंद रेत फिसल जाए जिस जगह हाथों से लम्हा लम्हा फिसलती है ज़िन्दगी “ मुमताज़ ” तेरा प्यार , मेरी रूह का शिगाफ़ आतिशफ़िशान-ए-दर्द में जलती है ज़िन्दगी