ज़ख़्मी रिश्तों का अभी बार उठाए चलिये
ज़ख़्मी
रिश्तों का अभी बार उठाए चलिये
राह
दुश्वार सही, साथ निभाए चलिये
कौन
जाने कहाँ ले जाए ये आवारा मिज़ाज
राह
में कुछ तो निशानात बनाए चलिये
और
कुछ मरहले आएँगे, ज़रूरत होगी
मशअलें
दिल की अभी और जलाए चलिये
क्या
ख़बर रूह को फिर दर्द मिले या न मिले
हाल
के कर्ब को सीने से लगाए चलिये
जब
मक़ाम आए बिछड़ने का तो तकलीफ़ न हो
बदगुमानी
भी कोई दिल में छुपाए चलिये
मंज़िलें
और भी हैं ज़ीस्त की राहों में अभी
जब
तक आवाज़ कोई दिल को बुलाए, चलिये
कब
बिछड़ जाए कोई, कौन कहाँ मिल जाए
हर
क़दम कोई नया दीप जलाए चलिये
आगे
“मुमताज़” अभी सेहरा की वुसअत होगी
अश्क
थोड़े अभी आँखों में छुपाए चलिये
कब बिछड़ जाए कोई, कौन कहाँ मिल जाए
ReplyDeleteहर क़दम कोई नया दीप जलाए चलिये, अद्भुत