शोलानुमा हैं ज़ख़्म हमारे, लाखों तूफ़ाँ आहों में

शोलानुमा हैं ज़ख़्म हमारे, लाखों तूफ़ाँ आहों में
ज़ुल्म-ओ-सितम से हमको झुका ले कौन है ऐसा शाहों में

घुस आया है अबके दुश्मन शायद शहर पनाहों में
आओ चलें, तहक़ीक़ करें, क्या उलझे हो अफ़वाहों में

क़िस्मत के ये पेच हैं या फिर वक़्त-ए-रवाँ की बेमेहरी
आ बैठे हैं राहों पर जो रहते थे आलीजाहों में

जाने कहाँ था ध्यान हमारा, कौन सी राह पे आ निकले
ऐसे भटके अबके हम, अब अटके हैं दोराहों में

भूला भटका काश कभी वो मेरे घर तक आ जाए
दिल में है बस एक तमन्ना, इक तस्वीर निगाहों में

राह कठिन है, वक़्त बुरा है, पहले क्या मालूम न था?
थामा है जब हाथ तो मेरे साथ चलो इन राहों में

एक नई मंज़िल की जानिब जारी है फिर आज सफ़र
एक सुनहरे मुस्तक़बिल के ले कर ख़्वाब निगाहों में

ग़म को सजा कर पेश किया है, दर्द को यूँ वुसअत दी है
पलकों पर मुमताज़ सितारे, बाद-ए-बहाराँ आहों में


शोलानुमा लपट के जैसे, शहर पनाहों में शहर की दीवार के अंदर, वक़्त-ए-रवाँ गुज़रता हुआ वक़्त, बेमेहरी बेरुख़ी, आलीजाहों में ऊंचे मरतबे वाले लोगों में, मुस्तक़बिल भविष्य, वुसअत विस्तार, बाद-ए-बहाराँ वासंती हवा 

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