बाग़ी क़व्वाल - अज़ीज़ नाज़ाँ (क़िस्त 2)
उस वक़्त क़व्वालियों का दौर दौरा था । फ़िल्म "अलहिलाल" का गीत "हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने" हिट हो चुका था, और बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर था । और इस के गायक इस्माईल आज़ाद की क़व्वाली की दुनिया में तूती बोलती थी । उन से मिलने और उन का प्रोग्राम बुक करने के लिए उन के घर के आगे लाइन लगी रहती थी । इत्तफ़ाक़ से इस्माईल आज़ाद उसी मोहल्ले में रहते थे, जिस में अज़ीज़ नाज़ाँ का घर था । कुछ घर वालों की प्रतिष्ठा, कुछ अपने टैलंट के बलबूते पर हुआ नाम, और कुछ इस लिए कि इस्माईल आज़ाद के छोटे भाई क़लंदर आज़ाद से उन कि दोस्ती थी, वजह कुछ भी रही हो, लेकिन इस्माईल आज़ाद के घर उनका आना जाना था । ये बात भी उन के घर वालों को बेहद नागवार थी । एक तो वो लोग सय्यद थे और इस्माईल आज़ाद क़ुरैशी, दूसरे उन का ख़ानदान बहुत मोअज़्ज़िज़ था, जबकि इस्माईल आज़ाद गाने बजाने से तअल्लुक़ रखते थे, जो उस ज़माने में यूँ भी भाँड-मीरासियों का काम समझा जाता था, अच्छे घरों के बच्चों को इस से दूर रहने की हिदायत दी जाती थी, फिर इस्लाम में तो इसे हराम ही क़रार दिया गया है । अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है के अज़ीज़ साहब को किन पाबंदि