फिर जाग उठा जूनून, फिर अरमाँ मचल गए
फिर जाग उठा जूनून , फिर अरमाँ मचल गए हम फिर सफ़र के शौक़ में घर से निकल गए मुस्तक़बिलों 1 के ख़्वाब में हम महव 2 थे अभी और ज़िन्दगी के हाथ से लम्हे फिसल गए आसाँ कहाँ था क़ैद ए तअल्लुक़ से छूटना वो मुस्करा दिया , कि इरादे बहल गए शायद बिखर ही जाती मेरी ज़ात जा ब जा 3 अच्छा हुआ के वक़्त से पहले संभल गए सूरज से जंग करने की नादानी की ही क्यूँ अब क्या उड़े जूनून , कि जब पर ही जल गए खोटे खरे कि बाक़ी रही है कह...