ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है


ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है
हमेशा होती है बारिश, जो वो एल्बम निकलता है

लहू को ढालना पड़ता है मेहनत से पसीने में
बड़ी मुश्किल से उलझी ज़िन्दगी का ख़म1 निकलता है

तरक़्क़ी के तक़ाज़ों के तले ऐसा दबा है वो
मरीज़-ए-ज़िन्दगी का रफ़्ता रफ़्ता दम निकलता है

मोहब्बत नफ़रतों में आजकल हल2 होती जाती है
लहू रिश्तों का होगा, अब ज़ुबां से सम3 निकलता है

हज़ारों वार कर कर के निचोड़ा है लहू पहले
जिगर के ज़ख़्म पर मलने को अब मरहम निकलता है

ज़रा एड़ी की जुम्बिश4 से ज़मीं मुंह खोल देती है
जो शिद्दत5 तश्नगी6 में हो, तो फिर ज़मज़म7 निकलता है

ज़रा सी बात की कितनी सफ़ाई दे रहे हैं वो
मगर मतलब तो हर इक बात का मुबहम8 निकलता है

वतन के ज़र्रे ज़र्रे को पिलाया है लहू हम ने
"ये रोना है कि अब ख़ून-ए-जिगर भी कम निकलता है"

ये जुमला हम नहीं, अक्सर सभी एहबाब9 कहते हैं
अजी "मुमताज़" के अशआर10 से रेशम निकलता है

1. उलझन, 2. Mix, 3. ज़हर, 4. हरकत, 5. तेज़ी, 6. प्यास, 7. मक्का में मौजूद मुसलमानों का पवित्र कुआँ, 8. गोल-मोल, 9. प्यारे लोग, 10. शेर का बहुवचन

ZAMEEN E DIL PE YAADO'N KA HASEE'N MAUSAM NIKALTA HAI
HAMESHA HOTI HAI BAARISH, JO WO ALBUM NIKALTA HAI

LAHOO KO DHAALNA PADTA HAI MEHNAT SE PASEENE MEN
BADI MUSHKIL SE ULJHI ZINDAGI KA KHAM NIKALTA HAI

TARAQQI KE TAQAAZO'N KE TALE AISA DABA HAI WO
MAREEZ E ZINDAGI KA RAFTA RAFTA DAM NIKALTA HAI

MOHABBAT NAFRATO'N ME'N AAJKAL HAL HOTI JAATI HAI
LAHOO RISHTO'N KA HOGA, AB ZUBAA'N SE SAM NIKALTA HAI

HAZAARO'N WAAR KAR KAR KE NICHODA HAI LAHOO PAHLE
JIGAR KE ZAKHM PAR MALNE KO AB MARHAM NIKALTA HAI

ZARA EDI KI JUMBISH SE ZAMEE'N MUNH KHOL DETI HAI
JO SHIDDAT TASHNAGI ME'N HO, TO PHIR ZAMZAM NIKALTA HAI

ZARA SI BAAT KI KITNI SAFAAI DE RAHE HAIN WO
MAGAR MATLAB TO HAR IK BAAT KA MUBHAM NIKALTA HAI

WATAN KE ZARRE ZARRE KO PILAAYA HAI LAHOO HAM NE
"YE RONA HAI KE AB KHOON E JIGAR BHI KAM NIKALTA HAI"

YE JUMLA HAM NAHIN, AKSAR SABHI EHBAAB KEHTE HAIN
AJI "MUMTAZ" KE ASHAAR SE RESHAM NIKALTA HAI

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