दहकती आरज़ू के हाथ में ज़ुल्मत का कासा है



दहकती आरज़ू के हाथ में ज़ुल्मत का कासा है
थकी बीनाई का अब बंद आँखों में बसेरा है

बिखरती रौशनी की क़ैद में ये किस का साया है
मेरे दिल में कोई परछाईं है, जो अब भी ज़िंदा है

है सूरत जानी पहचानी, मगर दिल नाशानासा है
मेरे दर पर जो साइल है, कोई तो इस से रिश्ता है

न जाने क्यूँ नज़ारों से भी वहशत होती जाती है
बहुत रंगीन है दुनिया, मगर हर रंग फीका है

दिल ए हस्सास जाने क्यूँ तड़प जाता है रह रह कर
अगर छाला नहीं कोई तो फिर ये दर्द कैसा है

बना कर बुत मुझे मेरी परस्तिश कर रहे हैं सब
मेरी मजबूरियों ने मुझ को ये ऐज़ाज़ बख्शा है

नसीब और वक़्त ने इस पर लिखे हैं तब्सिरे कितने
तबअ का मौजिज़ा देखो, वरक़ ये फिर भी सादा है

निगाहों ने लगा रक्खी है पाबंदी, मगर फिर भी
दरीचा खोल कर इक ख़्वाब ने चुपके से झाँका है

मोहब्बत का हर इक लम्हा बहुत  दिलचस्प है माना
मगर "मुमताज़" मेरी वहशतों का रंग गहरा है   

دہکتی آرزو کے ہاتھ میں ظلمت کا کاسہ ہے
تھکی بینائی کا اب بند آنکھوں میں بسیرا ہے

بکھرتی روشنی کی قید میں یہ کس کا سایہ ہے
مرے دل میں کوئی پرچھائیں ہے جو اب بھی زندہ ہے

ہے صورت جانی پہچانی مگر دل ناشناسا ہے
مرے در پر جو سائِل ہے، کوئی تو اس سے رشتہ ہے

دلِ حساس جانے کیوں تپک جاتا ہے رہ رہ کر
اگر چھالا نہیں کوئی تو پھر یہ درد کیسا ہے

بنا کر بُت مجھے میری پرستش کر رہے ہیں سب
مری مجبوریوں نے مجھ کو یہ اعزاز بخشا ہے

نصیب اور وقت نے اس پر لکھے ہیں تبصرے کتنے
طبع کا معجزہ دیکھو، ورق یہ اب بھی سادہ ہے

نگاہوں نے لگا رکھی ہے پابندی مگر پھر بھی
دریچہ کھول کر اک خواب نے چپکے سے جھانکا ہے

نہ جانے کیوں نظاروں سے بھی وحشت ہوتی جاتی ہے
بہت رنگین ہے دنیا مگر ہر رنگ پھیکا ہے

محبت کا ہر اک لمحہ بہت دلچسپ ہے مانا
مگر ممتازؔ میری وحشتوں کا رنگ گہرا ہے

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