नूर अपना मेरी हस्ती में ज़रा हल कर दे
नूर अपना मेरी हस्ती में ज़रा हल कर दे इक ज़रा हाथ लगा दे , मुझे संदल कर दे ज़ेर-ओ-बम राह के चलने नहीं देते मुझ को तू जो चाहे तो हर इक राह को समतल कर दे यूँ तो हर वक़्त चुभा करती है इक याद मुझे शाम आए तो मुझे और भी बेकल कर दे तेरे शायान-ए-ख़ुदाई हों अताएँ तेरी सारी महरूमी को यारब तू मुकफ़्फ़ल कर दे ज़ुल्म की , यास की , बदबख्ती की , महरूमी की " सारी दुनिया को मेरी आँखों से ओझल कर दे" अब न "मुमताज़" अधूरी रहे हसरत कोई मेरे मालिक ...