क़ल्ब में रख ले निगाहों में छुपा ले मुझ को
क़ल्ब में रख ले निगाहों में छुपा ले मुझ को टूटी फूटी हूँ , बिखरने से बचा ले मुझ को राह दुश्वार है , और दूर बहुत है मंज़िल तंग करते हैं बहुत पाँव के छाले मुझ को मैं हूँ तक़दीर की क़ैदी , तू अगर चाहे तो मेरे हाथों की लकीरों से चुरा ले मुझ को रोज़ लेती हूँ जनम , टूट के फिर जुडती हूँ ज़िन्दगी रोज़ नए रूप में ढाले मुझ को आज तक आ न सका नज़रें बदलने का हुनर यूँ तो आते हैं कई ढंग निराले मुझ को सतह ए आब पे मिलते नहीं नायाब गोहर मेरा किरदार समझ देखने वाले...