क़ल्ब में रख ले निगाहों में छुपा ले मुझ को
क़ल्ब में रख
ले निगाहों में
छुपा ले मुझ को
टूटी फूटी हूँ, बिखरने से
बचा ले मुझ को
राह दुश्वार है, और
दूर बहुत है
मंज़िल
तंग करते हैं
बहुत पाँव के
छाले मुझ को
मैं हूँ तक़दीर की
क़ैदी, तू अगर
चाहे तो
मेरे हाथों की लकीरों
से चुरा ले
मुझ को
रोज़ लेती हूँ
जनम, टूट के
फिर जुडती हूँ
ज़िन्दगी रोज़ नए
रूप में ढाले
मुझ को
आज तक आ
न सका नज़रें बदलने का
हुनर
यूँ तो आते
हैं कई ढंग
निराले मुझ को
सतह ए आब
पे मिलते नहीं
नायाब गोहर
मेरा किरदार समझ
देखने वाले मुझ को
चार सू बिखरी
है ता हद्द
ए नज़र तारीकी
जल के दिल
देता है बरसों
से उजाले मुझ को
इतना बेरब्त रहा
तू तो मुझे
खो देगा
रूठ जाऊं तो
कभी आ के
मना ले मुझ को
फ़ासलों को भी
कोई राह मिटा
सकती है
ख़ुद में महसूस
तो कर ढूँढने
वाले मुझ को
जब कभी दिल
के दरीचे को
खुला छोडूं मैं
तीरगी दिल के
उजालों से चुरा
ले मुझ को
एक दिन आएगा, क़ीमत
मेरी बढ़ जाएगी
गुज़रे वक्तों का
हूँ शहकार, सजा ले
मुझ को
बुझ के अब
राख हुआ जाता
है "मुमताज़" वजूद
इन तजुर्बात के शो'लों से
जला ले मुझ को
क़ल्ब- अंतस, ता हद्द ए नज़र- दृष्टि की सीमा तक, तारीकी- अँधेरा, ख्वाब ए
ज़र्रीं- सुनहरा सपना, ख्वाब- सपना, बेरब्त-असंबंधित, सिम्तों में-
दिशाओं में, वजूद-
व्यक्तित्व, दरीचा-खिड़की, तीरगी-अँधेरा, दुशवार- मुश्किल, सतह ए आब-पानी की सतह पर, नायाब गुहार-
दुर्लभ मोती, किरदार-चरित्र, तजुर्बात-अनुभव
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