सर-ए-महफ़िल सितम का तेरे चर्चा कर दिया होता

सर-ए-महफ़िल सितम का तेरे चर्चा कर दिया होता
मेरी दीवानगी ने तुझ को रुसवा कर दिया होता

इसी दिल की लगी से राख दुनिया हो गई होती
इसी दिल की लगी ने हश्र बरपा कर दिया होता

गुज़र कर दर्द हद से कुछ तो हल्का हो गया होता
तुम्हारी बेरुख़ी ने दिल का चारा कर दिया होता

है एहसाँ हम ने आँखों में संभाला है इन्हें वर्ना
समंदर को मेरे अश्कों को क़तरा कर दिया होता

निकालने को तो इक ये आरज़ू मेरी निकल जाती
तमन्नाओं ने फिर दुश्वार जीना कर दिया होता

ख़ुशी से मर भी हम जाते, ख़ुशी में जी भी हम उठते
तुम्हारी इक नज़र ने गर इशारा कर दिया होता

समाई थी जो वो मुमताज़ सारी उम्र इक शब में
उसी इक रात ने फिर मुझ को तन्हा कर दिया होता


चारा इलाज, क़तरा बूंद 

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