मेरा जुनून ग़म-ओ-रंज-ओ-आह से आगे
मेरा जुनून ग़म-ओ-रंज-ओ-आह से आगे तेरा जमाल हुदूद-ए-निगाह से आगे कहाँ कहाँ न मेरी बेख़ुदी तलाश आई कोई मिला न तेरी जल्वागाह से आगे सितम हर एक तेरा हमने सर आँखों पे रखा वफ़ा निबाही है हम ने निबाह से आगे तेरे करम की हदें हद्द-ए-तसव्वर से वसीअ मेरी ख़ताएँ कि हद्द-ए-गुनाह से आगे जो इश्क़ ढूँढने निकला तुझे तसव्वर में ख़याल पहुँचा मेरा तेरी राह से आगे ये किस मक़ाम पे लाई है आशिक़ी मुझ को मेरा वजूद है अब मेहर-ओ-माह से आगे जहाँ न दर्द , न मातम , न गुमरही , न सुकूँ मेरी तलाश की हद है निगाह से आगे अब अर्श तक न पहुँच जाए इसकी आँच कहीं ख़लिश ये दिल की जो पहुँची है आह से आगे न रोक पाएगी अब मुझ को तो सदा भी तेरी निकल गई हूँ मैं हर रस्म-ओ-राह से आगे उतर गई थी जो “ मुमताज़ ” दिल के पार निगाह कि ज़ख़्म-ए-दिल की तपक है कराह से आगे