नज़्म पार्ट 2 - यास


मैं तेरी मुन्तज़िर ता उम्र जानां रह भी सकती थी
हर इक रंज ओ अलम हर इक मुसीबत सह भी सकती थी
तेरे बस इक इशारे पर मुझे मरना गवारा था
तेरा बस इक इशारा, जो मेरे दिल का सहारा था

रिहाई हो चुकी, लेकिन अभी ज़ंजीर बाक़ी है
शिकस्ता हो चुका सपना, मगर ताबीर बाक़ी है
तसव्वुर की ज़मीं पर अब नई फ़स्लें उगाना है
अभी है जुस्तजू अपनी, अभी तो ख़ुद को पाना है

धड़कती ज़िन्दगी की लय अभी ख़ामोश करती हूँ
अभी तस्वीर ए हस्ती में नए कुछ रंग भरती हूँ 
ये बिखरी किरचें दिल की तो उठा लूं, फिर ज़रा दम लूं
ज़रा ज़ख्मों को ख़ुश सूरत बना लूं, फिर ज़रा दम लूं
ज़रा इन शबनमी यादों के क़तरों को सुखा डालूँ
ज़िबह कर लूं ज़रा उम्मीद को, हसरत को दफ़ना लूं

उम्मीदों के सरों से अब नई लडियां बनाउँगी
मैं अपने ज़हन के खद्शात को अब आज़माऊँगी 
मुझे अब जीतनी ही है, हर इक हारी हुई बाज़ी
बहुत अब हो गईं ये मन्तकें, ये झूटी लफ्फाज़ी

ज़िबह करना-सर काटना

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