जब भी मैं ने ख़त किया नक़्शा किसी तस्वीर का

जब भी मैं ने ख़त किया नक़्शा किसी तस्वीर का
रह गया खो कर लकीरों में हुनर तहरीर का

हम को सारी उम्र उस का रास्ता तकना पड़ा
अब भला वो क्या बताएगा सबब ताख़ीर का

हज़रत ए आदम से जो सादिर हुआ था इक गुनाह
क़र्ज़ अब तक ढो रहे हैं हम उसी तक़सीर का

नक़्श थी जो दिल के काग़ज़ पर, जिगर के खून से
रंग हर इक उड़ रहा है अब तो उस तस्वीर का

एक झूठे ख़्वाब पर हम ने जवानी सर्फ़ की
हम को था पूरा यकीं उस ख़्वाब की ताबीर का

हम तो ख़ुद अपनी अना के दायरों में क़ैद थे
हम ने देखा ही नहीं हल्क़ा तेरी ज़ंजीर का

है हमारी ही हुकूमत दिल नगर पर आज भी
हम ने ही पाया है विरसा इश्क़ की जागीर का

रो रही है खून, काग़ज़ पर खिंची हर इक लकीर
"नक़्श फरियादी है किस की शोख़ी ए तहरीर का"

पड़ गए "मुमताज़" ज़हर ए हक़ से छाले दहन में
होना था कुछ तो असर सच्चाई की तासीर का

ख़त किया खींचा, सबब कारण, ताख़ीर देर, सादिर हुआ था हो गया था, तक़सीर भूल, विरसा विरासत, हक़ सच्चाई, दहन मुँह

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते