धुँधला धुँधला सा हर नज़ारा है
धुँधला
धुँधला सा हर नज़ारा है
जाने
क़िस्मत का क्या इशारा है
जल
गई है तमामतर हस्ती
दिल
है सीने में या शरारा है
उससे
भागूँ भी, उसको चाहूँ भी
दुश्मन-ए-जाँ
है फिर भी प्यारा है
ग़म
में, तन्हाइयों में, वहशत में
हम
ने अक्सर उसे पुकारा है
एक
मैं, एक तसव्वर तेरा
अब
तो दिल का यही सहारा है
जाने
अंजाम आगे क्या होगा
दिल
अभी से जो पारा पारा है
हमने
“मुमताज़” उनके जलवों से
अपनी
तक़दीर को सँवारा है
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