गर तसव्वर तेरा नहीं होता
गर
तसव्वर तेरा नहीं होता
दिल
ये ग़ार-ए-हिरा नहीं होता
एक
दिल, एक तसव्वर तेरा
बस
कोई तीसरा नहीं होता
पास-ए-माज़ी
ज़रा जो रख लेते
वो
नज़र से गिरा नहीं होता
होता
वो मस्लेहत शनास अगर
हादसों
से घिरा नहीं होता
ये
तो हालात की नवाज़िश है
कोई
क़स्दन बुरा नहीं होता
दिल
को आ जाती थोड़ी अक़्ल अगर
आरज़ू
से भरा नहीं होता
गुलशन-ए-दिल
उजड़ के ऐ “मुमताज़”
फिर
कभी भी हरा नहीं होता
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