ये क्या कि अब तो दर्द भी दिल में नहीं रहा
ये
क्या कि अब तो दर्द भी दिल में नहीं रहा
ये
कौन सा मक़ाम मोहब्बत में आ गया
बेहिस
हुई उम्मीद, तमन्नाएँ मर चुकीं
इक
ज़ख़्म-ए-ज़िन्दगी था सो वो भी नहीं रहा
यूँ
तो तमाम हो ही चुकीं बाग़ी हसरतें
फिर
भी कहीं है रूह में इक शोर सा बपा
लगता
है इख़्तेताम पे आ पहुंचा है सफ़र
बोझल
है जिस्म, कुंद नज़र, दिल थका थका
माज़ी
की धूल छाई है दिल के चहार सू
दिन
तो चढ़ आया, आज ये कोहरा नहीं छँटा
“मुमताज़” इस ख़ुलूस ने क्या क्या किया है ख़्वार
इस
लाइलाज रोग की क्या कीजिये दवा
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