मेरे बिना वो भी तो कितना तन्हा होगा
मेरे बिना वो भी तो कितना तन्हा होगा
शायद वो भी मुझ से बिछड़ कर रोया होगा
मेरी हर महफ़िल में उस का चर्चा होगा
उस की तन्हाई पर मेरा साया होगा
झील के साहिल पर वो तन्हा बैठा होगा
शाम ढले हर ख़्वाहिश का दिल डूबा होगा
रात गए वो आज भी छत पर आया होगा
मेरा रस्ता सुबह तक उस ने देखा होगा
नफरत, बेपरवाई, छलावा, बद अखलाक़ी
मेरे उस के बीच यही इक रिश्ता होगा
दी है सज़ा उस ने मुझ को, लेकिन ये सच है
उस ने भी इक दर्द ए मुसलसल पाया होगा
अब उस को ये जीत चुभे, तो वो ही जाने
बाज़ी तो हर हाल में वो ही जीता होगा
कब से बैठी सोच रही हूँ मैं बस ये ही
क्या उस ने मेरे बारे में सोचा होगा
अब हम तो हर हाल में जीना सीख चुके हैं
लेकिन वो "मुमताज़" न जाने कैसा होगा
तन्हाई-अकेलापन, साहिल-किनारा, दर्द ए मुसलसल-लगातार
दर्द
Comments
Post a Comment