अपने आप में गुम हो जाना अच्छा लगता है
अपने
आप में गुम हो जाना अच्छा लगता है
दिल
को अब यूँ भी बहलाना अच्छा लगता है
सौदे
में ईमाँ के जिस दम घाटा हो जाए
ख़्वाबों
के बाज़ार सजाना अच्छा लगता है
यादों
की गलियों से हो कर अक्सर जाते हैं
खंडर
सा इक घर वो पुराना अच्छा लगता है
माज़ी
की खिड़की से दो पल झांक के देखो तो
बचपन
का बेबाक ज़माना अच्छा लगता है
सारी
उम्र का दुश्मन ठहरा, इस पे रहम कैसा
इस
बेहिस दिल को तड़पाना अच्छा लगता है
जब
शोले जज़्बात के मद्धम पड़ने लगते हैं
अरमानों
में हश्र उठाना अच्छा लगता है
राहत
से “मुमताज़” हमें कुछ ख़ास अदावत है
तूफ़ानों
में नाव चलाना अच्छा लगता है
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